AAPKI JIMMEDARI

AAPKI JIMMEDARI

Friday 8 December 2017

अन्त्यवसायी की ‘‘स्वरोजगार योजना‘‘ ने बदली राजेष के जीवन की दिषा

सफलता की कहानी
अन्त्यवसायी की ‘‘स्वरोजगार योजना‘‘ ने बदली राजेष के जीवन की दिषा

खण्डवा 8 दिसम्बर, 2017 - मध्यप्रदेष सरकार की स्वरोजगार योजनाएं किस तरह प्रदेष के युवाओं के जीवन की दिषा बदल रही है इसका बहुत अच्छा उदाहरण है खण्डवा निवासी राजेष पोरपंथ। कभी कपड़े की दुकान पर 3 हजार रूपये महीने की नौकरी करने वाला राजेष आज अन्त्यवसायी सहकारी विकास समिति द्वारा संचालित स्वरोजगार योजना की मदद से खण्डवा शहर के बुधवारा बाजार में साड़ी की दुकान का मालिक बन गया है और लगभग 20 से 25 हजार रूपये महीने आसानी से कमाकर अपने परिवार का बेहतर तरीके से जीवन यापन कर रहा है। 
राजेष बताता है कि उसके पिताजी दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी थे, आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी अतः पढ़ाई लिखाई भी बहुत अच्छी नहीं हुई और नौकरी भी नहीं लगी। पूंजी के अभाव में बड़ा धंधा वह कर नहीं सकता था सो कपड़े की एक दुकान पर 100 रूपये रोज में नौकरी कर ली। कुछ दिनांे नौकरी करने के बाद देखा कि यह कोई लाभदायक काम नहीं था। कुछ दिन कपड़े की दुकान पर नौकरी करने के बाद वह कपड़े के व्यवसाय में काफी कुछ सीख गया था। अब चूंकि दुकान का किराया देने के लिए उसके पास पूंजी नहीं थी, अतः पहले कुछ दिन साईकिल पर व बाद में मोटर साईकिल पर गांव-गांव जाकर साड़ी बेचने का काम शुरू किया। इस व्यवसाय में दिनभर घर से बाहर रहना तथा रात में थककर चूर होकर घर वापस आना रोज का काम हो गया था। न वह अपने बच्चों व परिवार पर ध्यान दे पाता था और ना ही कोई ज्यादा मुनाफा उसे हो रहा था। वह रोज सोचता कि कहीं से कम से कम 50 हजार रूपये की मदद ही मिल जाये तो वह खुद की दुकान खोल ले और गांव-गांव भटकने का यह धंधा बंद कर दें और अपने बच्चों पर भी ध्यान दे सकें। 
एक दिन राजेष को किसी ने अन्त्यवसायी सहकारी विकास समिति द्वारा संचालित स्वरोजगार योजना के बारे में बताया। उसने कार्यालय में जाकर पूछताछ की तो कुछ ही दिनों बाद उसके आवेदन की स्वीकृति प्राप्त हो गई और उसे 50 हजार रूपये की मदद मिल गई है। क्योंकि बैंक ऑफ इंडिया सिविल लाईन ब्रांच खण्डवा ने उसका प्रकरण स्वीकृत कर दिया था। राजेष बताता है कि उसे इस मदद में से केवल 40 हजार रूपये ही चुकाना थे क्योंकि 10 हजार रूपये की अनुदान सहायता उसे स्वीकृत हुई थी। यह राषि 5 वर्ष मंे चुकाई जाना थी जो कि उसने मात्र 3 वर्ष में ही चुका दी। आज वह खण्डवा के मुख्य बाजार में अपनी दुकान बेहतर तरीके से चला रहा है और उसकी पत्नि व दो बच्चे समाज में सम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर रहे है। वह कहता है कि यदि उस समय उसे 50 हजार रूपये की मदद न मिली होती वह आज भी साड़ी बेचने के लिए गांव-गांव भटक रहा होता। 

No comments:

Post a Comment